गए दिनों में औरों से भी मैं ने प्रणय किया है
गये दिनों में औरों से भी मैं ने प्रणय किया है- मीठा, कोमल, स्निग्ध और चिर-अस्थिर प्रेम दिया है। आज किन्तु, प्रियतम! जागी प्राणों में अभिनव पीड़ा- यह रस किसने इस जीवन में दो-दो बार पिया है? वृक्ष खड़ा रहता जैसे पत्ता-पत्ता बिखरा कर- वैसे झरे सभी वे मेरा अनुभव-भार बढ़ा कर। किन्तु आज साधना हृदय की फल-सी टपक पड़ी है- प्रियतम! इस को ले लो तुम अपना आँचल फैला कर!

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