कच्चा अनार, बच्चा बुलबुल
अनार कच्चा था पर बुलबुल भी शायद बच्चा था रोज़ फिर-फिर आता टुक्! टुक्! दो-चार चोंच मार जाता। और एक दिन मेरे तकते-तकते चोट खा कर अनार डाल से टूट गया। अपनी ही सोच पर सकते में आ कर मैं पूछ बैठा : क्या वह जानता है कि वह गिर गया? कच्चा अनार : गिर कर फूट गया? दाने बिखर गये। छाल पर डाल से दो-एक और मुरझे पँखुड़े भी झर गये। लारेंस कहता है कि हाँ, मुझे दिल का टूटना ही पसन्द है कि उस की फाँक में भोर के विविध रंग झाँक सकें मैं नहीं जानता। रंग झाँकेंगे तो क्या? किस के लिए? इतना पहचानता हूँ कि जब तक गिर कर फूट कर बिखरेगा नहीं तब तक भोर-रंगों का खरा सौन्दर्य निखरेगा नहीं। किस के लिए? किसी के लिए नहीं। ज्यों-ज्यों समझता हूँ, तेरे साथ, ओ बच्चा बुलबुल, एक नये सम्बन्ध में बझता हूँ।

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