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प्रियतम, एक बार और
प्रियतम, एक बार और
अज्ञेय
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प्रियतम, एक बार और, एक क्षण-भर के लिए और! मुझे अपनी ओर खींच कर, अपनी समर्थ भुजाओं से अपने विश्वास-भरे हृदय की ओर खींच कर, संसार के प्रकाश से मुझे छिपा कर, एक बार और खो जाने दो, एक क्षण-भर के लिए और समझने दो कि वह आशंका निर्मूल है, मिथ्या है!
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Last edited by
abhishek
May 27, 2017
Added by
Chhotaladka
March 31, 2017
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