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जल्‍वागर जब सों वो जमाल हुआ नूर-ए-ख़ुर्शीद पायमाल हुआ नश्‍शए-सब्‍ज़ए-ख़त-ए-ख़ूबाँ वाली-ए-आलम-ए-ख़याल हुआ...

ऐ बाद-ए-सबा बाग़ में मोहन के गुज़र कर मुझ दाग़ की इस लालए-ख़ूनीं कूँ ख़बर कर क्‍या दर्द किसी कूँ कि कहे दर्द मिरा जा ऐ आह मिरे दर्द की तूँ जाके ख़बर कर...

दिल हुआ है मिरा ख़राब-ए-सुख़न देख कर हुस्‍न-ए-बेहिजाब-ए-सुख़न ब़ज्‍म-ए-मा'नी में सर ख़ुशी है उसे जिसकूँ है नश्‍शा-ए-शराब-ए-सुखन...

जिसे इश्क़ का तीर कारी लगे उसे ज़िन्दगी क्यूँ न भारी लगे न छोड़े महब्बत दम—ए—मर्ग लग जिसे यार—ए—जानीं सूँ यारी लगे...

हरचंद कि उस आहू-ए-वहशी में भड़क है बेताब के दिल लेने कूँ लेकिन निधड़क है उश्‍शाक़ पे तुझ चश्‍म-ए-सितमगार का फिरना तरवार की ऊझड़ है या कत्ते की सड़क है...

हुआ है रश्‍क चम्‍पे की कली कूँ नज़र कर तुझ क़बा-ए-संदली कूँ करे फिऱदौस इस्‍तक़बाल उसका तसव्‍वुर जो किया तेरी गली कूँ...

तेरे मुख पर नाज़नीं यो निक़ाब झलकता है ज्‍यूँ मत्लए-आफ़ताब अदा फ़हम के दिल की तस्‍वीर कूँ तिरा क़द है ज्‍यूँ मिसरए-ए-इंतिख़ाब...

अंदोह-ओ-ग़म की बात तिरे बाज बन गई आवाज़ मेरी आह की फिर ता गगन गई ताहश्र उसका होश में आना मुहाल है जिसकी तरफ़ सनम की निगाह-ए-नयन गई...

आरिफ़ाँ पर हमेशा रौशन है कि फ़न-ए-आशिक़ी अजब फ़न है दुश्‍मन-ए-दीं का दीन दुश्‍मन है राहज़न का चिराग़ रौशन है...

मुझ हुक्‍म में वो रास्‍त क़द-ए-दिल नवाज़ है जिसके हरेक बोल में इशरत का साज़ है कहते हैं खोल पर्दा शनासान-ए-मुद्दआ जो ऊज में हवा के उड़े शाहबाज़ है...

अयाँ है हर तरफ़ आलम में हुस्न-ए-बे-हिजाब उसका बग़ैर अज़ दीदा-ए-हैराँ नहीं जग में निक़ाब उसका हुआ है मुझ पे शम्अ-ए-बज़्म-ए-यकरंगी सूँ यूँ रौशन के हर ज़र्रे ऊपर ताबाँ है दायम आफ़ताब उसका...

ख़ुदाया मिला साहिब-ए-दर्द कूँ कि मेरा कहे दर्द बेदर्द कूँ करे ग़म सूँ सद बर्ग सदपारा दिल दिखाऊँ अगर चेहरा-ए-ज़र्द कूँ...

नर्गिस क़लम हुई है सजन तुझ नयन अगे शक्‍कर डुबी है आब में तेरे बचन अगे ग़ुंचे कूँ गुल के आब में आना मुहाल है तेरे दहन की बात कहूँ गर चमन अगे...

हुआ नहीं वो सनम साहिब-ए-इख़्तियार हनोज़ बजाय ख़ुद है रक़ीबाँ का ऐतबार हनोज़ परी रुख़ाँ की झलक का किया हूँ बसकि ख़याल बरंग-ए-बर्क़ मिरा दिल है बेक़रार हनोज़...

चाहो कि होश सर सूँ अपस के बदर करो यक बार उस परी की गली में गुज़र करो है कि़स्‍स-ए-दराज़ के सुनने की आरज़ू उस जुल्‍फ़-ए-ताबदार की तारीफ़ सर करो...

ऐ सर्व-ए-ख़रामाँ तूँ न जा बाग़ में चलकर मत क़मरी-ओ-शम्‍शाद के सौदे में ख़लल कर कर चाक गरेबाँ कूँ गुलाँ सेहन-ए-चमन में आये हैं तिरे शौक़ में पर्दे सूँ निकल कर...

मत गुस्‍से के शोले सूँ जलते कूँ जलाती जा टुक मेहर के पानी सूँ तूँ आग बुझाती जा तुझ चाल की क़ीमत सूँ दिल नईं है मिरा वाकि़फ़ ऐ मान भरी चंचल टुक भाव बताती जा...

दिल तलबगार-ए-नाज़-ए-महवश है लुत्‍फ़ उसका अगरचे दिलकश है मुझ सूँ क्‍यूँकर मिलेगा हैराँ हूँ शोख़ है, बेवफ़ा है, सरकश है...

नाज़ मत कर तुझे अदा की क़सम बेतकल्‍लुफ़ हो मिल ख़ुदा की क़सम ज़ुल्‍फ़-ओ-रुख़ है तिरा जो लैल-ओ-नहार मुझकूँ वल्‍लैल-ओ-वलज़हा की क़सम...

ख़ूब रू ख़ूब काम करते हैं यक निगह में तमाम करते हैं देख ख़ूबाँ कूँ वक्‍त़ मिलने के किस अदा सूँ सलाम करते हैं...

शग़ल बेहतर है इश्‍क़बाज़ी का क्‍या हक़ीक़ी क्‍या वो मजाज़ी का हर ज़बाँ पर है मिस्‍ल-ए-ख़ाना मदाम ज़िक्र तुझ जुल्‍म की दराज़ी का...

ये मेरा रोना कि तेरी हँसी आप बस नईं परबसी परबसी है कुल आलम में करम मेरे उपर जुज़ रसी है जुज़ रसी है जुज़ रसी...

सजन टुक नाज़ सूँ मुझ पास आ आहिस्ता आहिस्ता छुपी बातें अपस दिल की सुना आहिस्ता आहिस्ता ग़रज़ गोयाँ की बाताँ कूँ न ला ख़ातिर मनीं हरगिज़ सजन इस बात कूँ ख़ातिर में ला आहिस्ता आहिस्ता...

जिसको लज़्ज़त है सुख़न के दीद की उसको ख़ुशवक़्ती है रोज़-ए-ईद की दिल मिरा मोती हो, तुझ बाली में जा कान में कहता है बाताँ भेद की...

हाफ़िज़े का हुस्‍न दिखलाया है निस्‍यानी मुझे है कलीद-ए-क़ुफ़्ल-ए-दानिश तर्ज़-ए-नादानी मुझे मौजज़न है दिल में मेरे हर रयन में पेचोताब जब सूँ तेरी ज़ुल्‍फ़ ने दी है परीशानी मुझे...

सरोद-ए-ऐश गावें हम, अगर वो उश्‍व साज़ आवे बजा दें तब्‍ल शादी के अगर वो दिलनवाज़ आवे ख़ुमार-ए-हिज्र ने जिसके दिया है दर्द-ए-सर मुजकूँ रखूँ नश्‍शा नमन अँखियाँ अगर वो मस्‍त-ए-नाज़ आवे...

कूचा-ए-यार ऐन कासी है जोगी-ए-दिल वहाँ का बासी है पी के बैराग की उदासी सूँ दिल पे मेरे सदा उदासी है...

अयाँ है हर तरफ़ आलम में हुस्‍न-ए-बेहिजाब उसका बग़ैर अज़ दीदा-ए-हैरां नहीं जग में निक़ाब उसका हुआ है मुझ पे शम्‍मे-बज्‍म़ यकरंगी सूँ यूँ रौशन कि हर ज़र्रे उपर ताबाँ है दायम आफ़ताब उसका...

मूसा अगर जो देखे तुझ नूर का तमाशा उसकूँ पहाड़ हूवे फिर तूर का तमाशा ऐ रश्‍क-ए-बाग़-ए-जन्‍नत तुझ पर नज़र किए सूँ रि़ज्‍वाँ को होवे दोज़ख़ फिर हूर का तमाशा...

जब सनम कूँ ख़याल-ए-बाग़ हुआ तालिब-ए-नश्शा-ए-फ़राग़ हुआ फ़ौज-ए-उश्शाक़ देख हर जानिब नाज़नीं साहिब-ए-दिमाग़ हुआ...

गिर्यां हैं अब्र-ए-चश्‍म मेरी अश्‍क बार देख है बर्क़ बेक़रार, मुझे बेक़रार देख फि़रदौस देखने की अगर आबरू है तुझ ऐ ज्‍यू पी के मुख के चमन की बहार देख...

ज़बान-ए-यार है अज़ बस कि यार-ए-ख़ामोशी बहार-ए-ख़त में है बर जा बहार-ए-ख़ामोशी स्‍याही ख़त-ए-शब रंग सूँ मुसव्‍वर-ए-नाज़ लिखा निगार के लब पर निगार-ए-ख़ामोशी...

मुश्‍ताक़ है उश्‍शाक़ तेरी बाँकी अदा के ज़ख़्मी है महबाँ तेरी शमशीर-ए-जफ़ा के हर पेच में चीरे के तिरे लिपटे हैं आशिक़ आलम के दिलाँ बंद हैं तुझ बंद-ए-क़बा के...

जिस वक़्त तबस्‍सुम में वो रंगीं दहन आवे गुलज़ार में ग़ुंचे के दहन पर सुख़न आवे ताहश्र उठे बू-ए-गुलाब उसके अरक़ सूँ जिस बरमिनीं यकबार वो गुल पैरहन आवे...

अगर गुलशन तरफ़ वो नो ख़त-ए-रंगीं अदा निकले गुल-ओ-रेहाँ सूँ रंग-ओ-बू शिताबी पेशवा निकले खुले हर ग़ुंच-ए-दिल ज्‍यूँ गुल-ए-शादाब शादी सूँ अगर टुक घर सूँ बाहर वो बहार-ए-दिल कुशा निकले...

मग़ज़ उसका सुबास होता है गुलबदन के जो पास होता है आ शिताबी नईं तो जाता हूँ क्‍या करूँ जी उदास होता है...

देता नहीं है बार रक़ीब-ए-शरीर कूँ शायद कि बूझता है हमारे ज़मीर कूँ उस नाज़नीं की तब्‍अ गर आबे ख़याल में बूझूँ सदा-ए-सूर क़लम की सरीर कूँ...

तेरी ज़ुल्‍फ़ के पेच में छंद है कि जिस छंद में चंद दर चंद है ख़याल-ए-ज़ुलफ़ तुझ रसा का सनम आशिक़ाँ के दिल का अलीबंद है...

इश्‍क़ में जिसकूँ महारत ख़ूब है मश्रब-ए-मजनूँ तरफ़ मंसूब है आशिक़-ए-बेताब सूँ तर्ज़-ए-वफ़ा ज्‍यूँ अदा मेहबूब की मेहबूब है...

अगर मुझ कन तू ऐ रश्‍क-ए-चमन होवे तो क्‍या होवे निगह मेरी का तेरा मुख वतन होवे तो क्‍या होवे सियह रोज़ाँ के मातम की सियाही दफ़्अ करने कूँ अगर यक निस तू शम्‍मे-अंजुमन होवे तो क्‍या होवे...