अंदोह-ओ-ग़म की बात तिरे बाज बन गई
अंदोह-ओ-ग़म की बात तिरे बाज बन गई आवाज़ मेरी आह की फिर ता गगन गई ताहश्र उसका होश में आना मुहाल है जिसकी तरफ़ सनम की निगाह-ए-नयन गई सुरमे का मुँह सियाह किया उसने जग मिनीं जिसकी नयन में पीव की ख़ाक-ए-चरन गई तनहा सवाद-ए-हिंद में शुहरत नहीं सनम तुझ ज़ुल्‍फ़ मुश्‍कबू की ख़बर ता ख़ुतन गई अब लग 'वली' पिया ने दिखाया नहीं दरस ज्‍यूँ शम्‍मे-इंतिज़ार में सारी रयन गई

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