जल्वागर जब सों वो जमाल हुआ
जल्‍वागर जब सों वो जमाल हुआ नूर-ए-ख़ुर्शीद पायमाल हुआ नश्‍शए-सब्‍ज़ए-ख़त-ए-ख़ूबाँ वाली-ए-आलम-ए-ख़याल हुआ याद कर तुझ भवाँ की बैत-ए-बुलंद माह-ए-नो साहिब-ए-कमाल हुआ देख कर तुझ निगाह की शोख़ी होश-ए-आशिक़ रम-ए-ग़ज़ाल हुआ हुस्‍न उस दिलरुबा का मुद्दत सों अक्‍स-ए-आईना-ए-ख्‍य़ाल हुआ वस्‍फ़ में तुझ भवाँ के हर मिसरा सानी-ए-मिसरए-हलाल हुआ जिनने देखा है तुझ निगाह का तेग़ फिर के जीना उसे मुहाल हुआ अज़ल मजनूँ के बाद मुझकूँ 'वली' सूबा-ए-आशिक़ी बहाल हुआ

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