मुझ हुक्म में वो रास्ती क़द-ए-दिल नवाज़ है
मुझ हुक्‍म में वो रास्‍त क़द-ए-दिल नवाज़ है जिसके हरेक बोल में इशरत का साज़ है कहते हैं खोल पर्दा शनासान-ए-मुद्दआ जो ऊज में हवा के उड़े शाहबाज़ है जब सूँ रखा हूँ इश्‍क़ के आतिश उपर क़दम तब सूँ मिसाल-ए-ऊद मिरा ज्‍यूँ गुदाज़ है ऐ बुलहवस न दिल में रख आहंग-ए-आशिक़ी जाँबाज़ आशिकाँ पे ये दरवाज़ा बाज़ है करने को सैर राह-ए-हजाज़-ओ-इराक़-ए-इश्‍क़ उश्‍शाक़ पास साज़-ओ-नवा सब नियाज़ है तेरे ख़याल में जो हुआ ख़ुश्‍क ज्‍यूँ रबाब मिज़राब-ए-ग़म का हाथ उस अपर दराज़ है मेहराब तुझ भवाँ की अजब है मुक़ाम-ए-ख़ास हर पंजगाह जिसमें दिलों की नमाज़ है सुन हर्फ़ रास्‍तबाज़ का, मत मिल रक़ीब सूँ हर चंद तेरी तब्‍अ मुख़ालिफ़ नवाज़ है ख़ाराँ दिलाँ के चश्म की निस्‍बत के फ़ैज़ सूँ सुरमे कूँ इस्‍फ़हाँ के अजब इम्तियाज़ है बांग-ए-बुलंद बात ये कहता हूँ ऐ 'वली' इस शे'र पर बजा है अगर मजकूँ नाज़ है

Read Next