हुआ है रश्क चम्पे की कली कूँ
हुआ है रश्‍क चम्‍पे की कली कूँ नज़र कर तुझ क़बा-ए-संदली कूँ करे फिऱदौस इस्‍तक़बाल उसका तसव्‍वुर जो किया तेरी गली कूँ हमारी आह-ए-आतिश रंग सुनकर हुई है बेक़रारी बीजली कूँ तिरे ग़म में दिल-ए-सूराख़-सूराख़ किया पैदा सदा-ए-बाँसली कूँ दिल-ए-पुर ख़ूँ ने मेरे बाग़ में जा दिया तालीम-ए-ख़ूँख़्वारी कली कूँ किया है आब-ए-ख़जलत सूँ सरापा हर इक मिसरा सूँ मिस्‍त्री की डली कूँ पड़े सुनकर उछल ज्‍यूँ मिसर-ए-बर्क़ अगर मिसरा लिखूँ 'नासिर अली' कूँ तिरे अशआर ऐसे नहीं 'फ़राक़ी' कि जिस पर रश्‍क आवेगा 'वली' कूँ

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