तेरी ज़ुल्फ़ के पेच में छंद है
तेरी ज़ुल्‍फ़ के पेच में छंद है कि जिस छंद में चंद दर चंद है ख़याल-ए-ज़ुलफ़ तुझ रसा का सनम आशिक़ाँ के दिल का अलीबंद है बिरह आग तेरा मेरे घर मिनीं जो बंदा किया बंद दर बंद है तकल्‍लुम है तुझ लब सूँ यूँ ख़ुशमज़ा जो बेजा कया शक्‍कर-ओ-क़ंद है दिवाना किया है 'वली' कूँ सदा तिरी-ज़ुल्‍फ़ में क्‍या सजन! छंद है

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