जिसको लज़्ज़त है सुख़न के दीद की
जिसको लज़्ज़त है सुख़न के दीद की उसको ख़ुशवक़्ती है रोज़-ए-ईद की दिल मिरा मोती हो, तुझ बाली में जा कान में कहता है बाताँ भेद की ज़ुल्‍फ़ नईं तुझ मुख पे ऐ दरिया-ए-हुस्‍न मौज है ये चश्‍म-ए-ख़ुर्शीद की उसके ख़त-ओ-ख़ाल सूँ पूछो ख़बर बूझता हिंदू है बाताँ बेद की तुझ दहन कूँ देख कर बोला 'वली' ये कली है गुलशन-ए-उम्‍मीद की

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