दिल हुआ है मिरा ख़राब-ए-सुख़न
दिल हुआ है मिरा ख़राब-ए-सुख़न देख कर हुस्‍न-ए-बेहिजाब-ए-सुख़न ब़ज्‍म-ए-मा'नी में सर ख़ुशी है उसे जिसकूँ है नश्‍शा-ए-शराब-ए-सुखन राह-ए-मज़्मून-ए-ताज़ा बंद नहीं ताक़यामत खुला है बाब-ए-सुख़न जल्‍वा पीरा हो शाहिद-ए-मा'नी जब ज़बाँ सूँ उठा निक़ाब-ए-सुख़न है तिरी बात ऐ नज़ाकत-ए-फ़हम लौहे-दीबाचा-ए-किताब-ए-सुख़न है सुख़न जग मिनीं अदीमुलमिस्‍ल जुज़ सुख़न नईं दुजा जवाब-ए-सुख़न लफ़्ज़-ए-रंगीं है मत्‍लए-रंगीं नूर-ए-मा'नी है आफ़ताब-ए-सुख़न शे'र फ़हमी की देख कर गर्मी दिल हुआ है मिरा कबाब-ए-सुख़न उर्फी़-ओ-अनवरी-ओ-ख़ाक़ानी मुझको देते हैं सब हिसाब-ए-सुख़न ऐ 'वली' दर्द-ए-सर कभू न रहे गर मिले संदल-ओ-गुलाब-ए-सुख़न

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