ख़ुदाया मिला साहिब-ए-दर्द कूँ
ख़ुदाया मिला साहिब-ए-दर्द कूँ कि मेरा कहे दर्द बेदर्द कूँ करे ग़म सूँ सद बर्ग सदपारा दिल दिखाऊँ अगर चेहरा-ए-ज़र्द कूँ हटा बुलहवस तुझ भवाँ देखकर कहाँ ताब-ए-शमशीर नामर्द कूँ अगर जल में जल कर कँवल ख़ाक हो न पहुँचे तिरे पाँव की गर्द कूँ लिखा तुझ दहन की सिफ़त में 'वली' हर एक फ़र्द में जौहर-ए-फ़र्द कूँ

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