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बुलबुल जा रही है आज! प्राण सौरभ से भिदा है, कंटकों से तन छिदा है, याद भोगे सुख-दुखों की आ रही है आज!...

मैं पाषाणों का अधिकारी! है अग्नि तपित मेरा चुंबन, है वज्र-विनिंदक भुज-बंधन, मेरी गोदी में कुम्हलाईं कितनी वल्लरियाँ सुकुमारी!...

देवलोक से मिट्टी लाकर मैं मनुष्य की मूर्ति बनाता! रचता मुख जिससे निकली हो वेद-उपनिषद की वर वाणी,...

बीते दिन कब आने वाले! मेरी वाणी का मधुमय स्‍वर, विश्‍व सुनेगा कान लगाकर, दूर गए पर मेरे उर की धड़कन को सुन पाने वाले!...

तू क्यों बैठ गया है पथ पर? ध्येय न हो, पर है मग आगे, बस धरता चल तू पग आगे, बैठ न चलनेवालों के दल में तू आज तमाशा बनकर!...

कुछ भी आज नहीं मैं लूँगा! जिन चीजों की चाह मुझे थी, जिनकी कुछ परवाह मुझे थी, दीं न समय से तूने, असमय क्या ले उन्हें करूँगा!...

देखतीं आकाश आँखें! श्वेत अक्षर पृष्ठ काला, तारकों की वर्णमाला, पढ़ रहीं हैं एक जीवन का जटिल इतिहास आँखें!...

बिसरा दो, माना, मेरी थी नादानी। मैं न कहूँगा मलयानिल ने जो मुझको सिखलाया, मैं न कहूँगा अलि-कलियों ने...

जग की व्याकुलता का केंद्र— जहाँ छिड़ा लोहित संग्राम, जहाँ मचा रौरव कुहराम, पटा हताहत से जो ठाम!...

चाँदनी में साथ छाया! मौन में डूबी निशा है, मौन-डूबी हर दिशा है, रात भर में एक ही पत्ता किसी तरु ने गिराया!...

लहर सागर का नहीं श्रृंगार, उसकी विकलता है; अनिल अम्बर का नहीं, खिलवार उसकी विकलता है;...

मधुर प्रतीक्षा ही जब इतनी, प्रिय, तुम आते, तब क्या होता। मौन रात इस भाँति कि जैसे कोई गत वीणा पर बजकर अभी-अभी सोई खोई-सी...

नहीं बिसरते हैं बिसराए तेरे नयन सनीर, लजीले। झलक उठा जिनमें वह सब जो सोच-सोच मन कदराता था, ललक उठा उनमें वह सब जो...

आज मुझसे बोल, बादल! तम भरा तू, तम भरा मैं, ग़म भरा तू, ग़म भरा मैं, आज तू अपने हृदय से हृदय मेरा तोल, बादल...

विश्व मनाएगा कल होली! घूमेगा जग राह-राह में आलिंगन की मधुर चाह में, स्नेह सरसता से घट भरकर, ले अनुराग राग की झोली!...

आज मुझसे दूर दुनिया! भावनाओं से विनिर्मित, कल्पनाओं से सुसज्जित, कर चुकी मेरे हृदय का स्वप्न चकनाचूर दुनिया!...

मेरा गगन से संलाप! दीप जब दुनिया बुझाती, नींद आँखों में बुलाती, तारकों में जा ठहरती दृष्टि मेरी आप!...

कभी, मन, अपने को भी जाँच। नियति पुस्तिका के पन्नों पर, मूँद न आँखें, भूल दिखाकर, लिखा हाथ से अपने तूने जो उसको भी बाँच।...

तुम गये झकझोर! कर उठे तरु-पत्र मरमर, कर उठा कांतार हरहर, हिल उठा गिरि, गिरि शिलाएँ कर उठीं रव घोर!...

मधुप, नहीं अब मधुवन तेरा! तेरे साथ खिली जो कलियाँ, रूप-रंगमय कुसुमावलियाँ, वे कब की धरती में सोईं, होगा उनका फिर न सवेरा!...

लो दिन बीता, लो रात गई। सूरज ढल कर पच्छिम पंहुचा, डूबा, संध्या आई, छाई, सौ संध्या-सी वह संध्या थी,...

यह ठौर प्रतीक्षा की घड़ियों का साखी। यहाँ जहाँ पर कंटक, झाड़ों, झंखाड़ों का जाला, कभी खड़ा था पेड़ कदम का...

कटक संवार शत्रु देश पर चढ़ा, घमंड, घोर शोर से भरा बढ़ा, स्वतंत्र देश, उठ इसे सबक सिखा, बहुत हुई न देर अब लगा जरा।...

ले ली जीवन ने अग्नि-परीक्षा मेरी। मैं आया था जग में बनकर लहरों का दीवाना, यहाँ कठिन था दो बूँदों से...

रात आधी, खींच कर मेरी हथेली एक उंगली से लिखा था 'प्यार' तुमने। फ़ासला था कुछ हमारे बिस्तरों में और चारों ओर दुनिया सो रही थी, तारिकाएँ ही गगन की जानती हैं ...

मूल्य दे सुख के क्षणों का! एक पल स्वच्छंद होकर तू चला जल, थल, गगन पर, हाय! आवाहन वही था विश्व के चिर बंधनों का!...

सूरज ढल कर पच्छिम पंहुचा, डूबा, संध्या आई, छाई, सौ संध्या सी वह संध्या थी, क्यों उठते-उठते सोचा था...

सबसे कोमल, आयर-मधुबन की कलिका का तुम नाम अगर मुझसे पूछो, भर आह कहूँगा मैं नोरा।...

तीर पर कैसे रुकूँ मैं, आज लहरों में निमंत्रण! रात का अंतिम प्रहर है, झिलमिलाते हैं सितारे, वक्ष पर युग बाहु बाँधे, मैं खड़ा सागर किनारे वेग से बहता प्रभंजन, केश-पट मेरे उड़ाता,...

तुम भी तो मानो लाचारी। सर्व शक्तिमय थे तुम तब तक, एक अकेले थे तुम जब तक, किंतु विभक्त हुई कण-कण में अब वह शक्ति तुम्हारी।...

हाय, क्या जीवन यही था। एक बिजली की झलक में स्वप्न औ’ रस-रूप दीखा, हाथ फैले तो मुझे निज हाथ भी दिखता नहीं था।...

बादल घिर आए, गीत की बेला आई। आज गगन की सूनी छाती भावों से भर आई, चपला के पावों की आहट...

नींद प्यारी थी तुम्हें तब क्योंकि तुमने प्यार का शर-शूल था समझा न जाना| वे किसी इतिहास के अध्याय-सी हैं जो कि रातें जागकर मैंने बिताई,...

जहाँ असत्य, सत्य पर न छा सके, जहाँ मनुष्य को न पशु दबा सके, हृदय-पुकार को न शून्य खा सके, रहे सदा सुखी पवित्र मेदिनी।...

पच्छिम से घन अंधकार ले उतर पड़ी है काली रात, कहती, मेरा राज अकंटक होता जब तक नहीं प्रभात।...

भावना तुमने उभारी थी कभी मेरी, इसे भूला नहीं मैं। आज मैं यह सोचता हूँ क्या तुम्हारी आँख में था, हाथ में था, क्या कहूँ इसके सिवा बस एक जादू--...

उर में अग्नि के शर मार! जब कि मैं मधु स्वप्नमय था, सब दिशाओं से अभय था, तब किया तुमने अचानक यह कठोर प्रहार,...

तारक दल छिपता जाता है। कलियाँ खिलती, फूल बिखरते, मिल सुख-दुख के आँसू झरते, जीवन और मरण दोनों का राग विहंगम-दल गाता है।...

जीवन भूल का इतिहास! ठीक ही पथ को समझकर, मैं रहा चलता उमर भर, किंतु पग-पग पर बिछा था भूल का छल पाश!...

जगो कि तुम हज़ार साल सो चुके, जगो कि तुम हज़ार साल खो चुके, जहान सब सजग-सचेत आज तो, तुम्हीं रहो पड़े हुए न बेख़बर।...