तुम भी तो मानो लाचारी
तुम भी तो मानो लाचारी। सर्व शक्तिमय थे तुम तब तक, एक अकेले थे तुम जब तक, किंतु विभक्त हुई कण-कण में अब वह शक्ति तुम्हारी। तुम भी तो मानो लाचारी। गुस्सा कल तक तुम पर आता, आज तरस मैं तुम पर खाता, साधक अगणित आँगन में हैं सीमित भेंट तुम्हारी। तुम भी तो मानो लाचारी। पाना-वाना नहीं कभी है, ज्ञात मुझे यह बात सभी है, पर मुझको संतोष तभी है, दे न सको तुम किंतु बनूँ मैं पाने का अधिकारी। तुम भी तो मानो लाचारी।

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