बादल घिर आए, गीत की बेला आई
बादल घिर आए, गीत की बेला आई। आज गगन की सूनी छाती भावों से भर आई, चपला के पावों की आहट आज पवन ने पाई, डोल रहें हैं बोल न जिनके मुख में विधि ने डाले बादल घिर आए, गीत की बेला आई। बिजली की अलकों ने अंबर के कंधों को घेरा, मन बरबस यह पूछ उठा है कौन, कहाँ पर मेरा? आज धरणि के आँसू सावन के मोती बन बहुरे, घन छाए, मन के मीत की बेला आई। बादल घिर आए, गीत की बेला आई।

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