यह ठौर प्रतीक्षा की घड़ियों का साखी।
यहाँ जहाँ पर कंटक, झाड़ों,
झंखाड़ों का जाला,
कभी खड़ा था पेड़ कदम का
शीतल छायावाला,
जिसके नीचे बैठ बिताता
था दिन श्याम-सलोना,
यह ठौर प्रतीक्षा की घड़ियों का साखी।
यहाँ बजा करती थी उसकी
मुरली धीरे धीरे
ध्वनित हुआ करती थीं उससे
कितने मन की पीरें,
होता था उच्छल जमुना जल,
विह्वल मलय समीरण,
विरहाकुल होते थे बिरवे, पशु, पाखी।
यह ठौर प्रतीक्षा की घड़ियों का साखी।