कामना
जहाँ असत्य, सत्य पर न छा सके, जहाँ मनुष्य को न पशु दबा सके, हृदय-पुकार को न शून्य खा सके, रहे सदा सुखी पवित्र मेदिनी। जिसे न ज़ोर-ज्यादती डरा सके, जिसे न लोभ लाख का गिरा सके, जिसे न बल जहान का फिरा सके, चले सदा प्रतापवान लेखनी। कि जो विमूक भाव शब्द में धरे, कि जो विमल विचार गीत में भरे, कि जो भविष्य कल्पना मुखर करे, जिए सदा ज़बान-प्राण का धनी।

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