बिसरा दो, माना, मेरी थी नादानी
बिसरा दो, माना, मेरी थी नादानी। मैं न कहूँगा मलयानिल ने जो मुझको सिखलाया, मैं न कहूँगा अलि-कलियों ने जो कुछ पाठ पढ़ाया, जो संकेत किए कोकिल ने छिपकर मंजरियों में, मुझको थी अपने कवि की लाज निभानी। बिसरा दो, माना, मेरी थी नादानी। याद यहाँ रखने की चीजें किरणों की मुस्कानें, लहराती अंबर में तारों की नित नीरव तानें, मृदुल कल्पनाएँ मानव के मन में उठनेवाली, मेरी भूलों की मेरी साँस निशानी। बिसरा दो, माना, मेरी थी नादानी।

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