मैं पाषाणों का अधिकारी!
है अग्नि तपित मेरा चुंबन,
है वज्र-विनिंदक भुज-बंधन,
मेरी गोदी में कुम्हलाईं कितनी वल्लरियाँ सुकुमारी!
मैं पाषाणों का अधिकारी!
दो बूँदों से छिछला सागर,
दो फूलों से हल्का भूधर,
कोई न सका ले यह मेरी पूजा छोटी-सी, पर भारी!
मैं पाषाणों का अधिकारी!
मेरी ममता कितनी निर्मम,
कितना उसमें आवेग अगम!
(कितना मेरा उस पर संयम!)
असमर्थ इसे सह सकने को कोमल जगती के नर-नारी!
मैं पाषाणों का अधिकारी!