मनुष्य की मूर्ति
देवलोक से मिट्टी लाकर मैं मनुष्य की मूर्ति बनाता! रचता मुख जिससे निकली हो वेद-उपनिषद की वर वाणी, काव्य-माधुरी, राग-रागिनी जग-जीवन के हित कल्याणी, हिंस्र जन्तु के दाढ़ युक्त जबड़े-सा पर वह मुख बन जाता! देवलोक से मिट्टी लाकर मैं मनुष्य की मूर्ति बनाता! रचता कर जो भूमि जोतकर बोएँ, श्यामल शस्य उगाएँ, अमित कला कौशल की निधियाँ संचित कर सुख-शान्ति बढ़ाएँ, हिस्र जन्तु के नख से संयुत पंजे-सा वह कर बन जाता! देवलोक से मिट्टी लाकर मैं मनुष्य की मूर्ति बनाता! दो पाँवों पर उसे खड़ाकर बाहों को ऊपर उठवाता, स्वर्ग लोक को छू लेने का मानो हो वह ध्येय बनाता, हाथ टेक धरती के ऊपर हाय, नराधम पशु बन जाता! देवलोक से मिट्टी लाकर मैं मनुष्य की मूर्ति बनाता!

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