नींद प्यारी थी तुम्हें तब क्योंकि तुमने प्यार का शर-शूल था समझा न जाना
नींद प्यारी थी तुम्हें तब क्योंकि तुमने प्यार का शर-शूल था समझा न जाना| वे किसी इतिहास के अध्याय-सी हैं जो कि रातें जागकर मैंने बिताई, किंतु उन सारी निशाओं में मुझे क्यों आज बरबस उस निशा की याद आई, जबकि कर सौ कोशिशें मैं सो न पाया, जब जगा तुमको न पाया सौ जतन कर, नींद प्यारी थी तुम्हें तब क्योंकि तुमने प्यार का शर-शूल था समझा न जाना| जिस तरह बत्तीस दाँतों से घिरी है जीभ, ऐसे उस समय था प्यार मेरा, उठ हृदय से कंठ से फिर घुट रहा था भावनाओं से भरा उद्गार मेरा, क्रूरताएँ सब समय की माफ कर दूँ पर क्षमा हरगिज नहीं मैं कर सकूँगा उस निशा का व्यंग उसका ला तुम्हें मेरे निकट भी, दूर भी मुझसे सुलाना। नींद प्यारी थी तुम्हें तब क्योंकि तुमने प्यार का शर-शूल था समझा न जाना|

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