तारक-दल छिपता जाता है
तारक दल छिपता जाता है। कलियाँ खिलती, फूल बिखरते, मिल सुख-दुख के आँसू झरते, जीवन और मरण दोनों का राग विहंगम-दल गाता है। तारक दल छिपता जाता है। इसे कहूँ मैं हास पवन का, या समझूँ उच्छ्वास पवन का? अवनि और अंबर दोनों से प्रात समीरण का नाता है। तारक दल छिपता जाता है। रवि ने अपना हाथ बढ़ाकर नभ दीपों का लिया तेज हर, जग में उजियाला होता है, स्वप्न-लोक में तम छाता है। तारक दल छिपता जाता है।

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