लहर सागर का नहीं श्रृंगार
लहर सागर का नहीं श्रृंगार, उसकी विकलता है; अनिल अम्बर का नहीं, खिलवार उसकी विकलता है; विविध रूपों में हुआ साकार, रंगो में सुरंजित, मृत्तिका का यह नहीं संसार, उसकी विकलता है। गन्ध कलिका का नहीं उद्गार, उसकी विकलता है; फूल मधुवन का नहीं गलहार, उसकी विकलता है; कोकिला का कौन-सा व्यवहार, ऋतुपति को न भाया? कूक कोयल की नहीं मनुहार, उसकी विकलता है। गान गायक का नहीं व्यापार, उसकी विकलता है; राग वीणा की नहीं झंकार, उसकी विकलता है; भावनाओं का मधुर आधार सांसो से विनिर्मित, गीत कवि-उर का नहीं उपहार, उसकी विकलता है।

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