देखना हर सुब्ह तुझ रुख़्सार का है मुताला मतला-ए-अनवार का बुलबुल ओ परवाना करना दिल के तईं काम है तुझ चेहरा-ए-गुल-नार का...
आज दिस्ता है हाल कुछ का कुछ क्यूँ न गुज़रे ख़याल कुछ का कुछ दिल-ए-बे-दिल कूँ आज करती है शोख़ चंचल की चाल कुछ का कुछ...
सजन टुक नाज़ सूँ मुझ पास आ आहिस्ता आहिस्ता छुपी बातें अपस दिल की सुना आहिस्ता आहिस्ता ग़रज़ गोयाँ की बाताँ कूँ न ला ख़ातिर मनीं हरगिज़ सजन इस बात कूँ ख़ातिर में ला आहिस्ता आहिस्ता...
याद करना हर घड़ी उस यार का है वज़ीफ़ा मुझ दिल-ए-बीमार का आरज़ू-ए-चश्मा-ए-कौसर नईं तिश्ना-लब हूँ शर्बत-ए-दीदार का...
छुपा हूँ मैं सदा-ए-बाँसुली में कि ता जाऊँ परी-रू की गली में न थी ताक़त मुझे आने की लेकिन ब-ज़ोर-ए-आह पहुँचा तुझ गली में...
तुझ लब की सिफ़त लाल-ए-बदख़्शाँ सूँ कहूँगा जादू हैं तिरे नैन ग़ज़ालाँ सूँ कहूँगा दी बादशही हक़ ने तुझे हुस्न-नगर की यू किश्वर-ए-ईराँ में सुलैमाँ सूँ कहूँगा...
तख़्त जिस बे-ख़ानमाँ का दस्त-ए-वीरानी हुआ सर उपर उस के बगूला ताज-ए-सुल्तानी हुआ क्यूँ न साफ़ी उस कूँ हासिल हो जो मिस्ल-ए-आरसी अपने जौहर की हया सूँ सर-ब-सर पानी हुआ...
गफ़लत में वक़्त अपना न खो होशियार हो, होशियार हो कब लग रहेगा ख़्वाब में, बेदार हो, बेदार हो गर देखना है मुद्दआ उस शाहिद-ए-मआनी का रू ज़ाहिर परस्ताँ सूँ सदा,बेज़ार हो, बेज़ार हो...
सजन तुम सुख सेती खोलो नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता कि ज्यों गुल से निकसता है गुलाब आहिस्ता आहिस्ता हजारों लाख खू़वाँ में सजन मेरा चले यूँ कर सितारों में चले ज्यों माहताब आहिस्ता आहिस्ता...
वो सनम जब सूँ बसा दीदा-ए-हैरान में आ आतिश-ए-इश्क़ पड़ी अक़्ल के सामान में आ नाज़ देता नहीं गर रुख्स़त-ए-गुलगश्त-ए-चमन ऐ चमनज़ार-ए-हया दिल के गुलिस्तान में आ...
न समझो ख़ुद-ब-ख़ुद दिल बेख़बर है निगह में उस परी रू की असर है अझूँ लग मुख दिखाया नहीं अपस का सजन मुझ हाल सूँ क्या बेख़बर है...
सनम मेरा सुख़न सूँ आशना है मुझे फि़क्र-ए-सुख़न करना बजा है चमन में वस्ल के हर जल्वए-यार गुल-ए-रंगीं बहार-ए-मुदद्आ है...
उसको हासिल क्यूँ होवे जग में फ़रोग़-ए-ज़िदगी गर्दिश-ए-अफ़लाक है जिसकूँ अयाग़-ए- ज़िदगी ऐ अज़ीज़ाँ सैर-ए-गुलशन है गुल-ए-दाग़-ए-अलम सुहबत-ए-अहबाब है मा'नी में बाग़-ए- ज़िदगी...
मुदद्त हुई सजन ने किताबत नईं लिखी आने की अपने रम्ज़-ओ-किनायत नईं लिखी मैं अपने दिल की तुझकूँ हिकायत नईं लिखी तेरी मफ़ार्क़त की शिकायत नईं लिखी...
तुझ मुख की झलक देख गई जोत चँदर सूँ तुझ मुख पे अरक़ देख गई आब गुहर सूँ शर्मिंदा हो तुझ मुख के दिखे बाद सिकंदर बिलफ़र्ज़ बनावे अगर आईना क़मर सूँ...
भड़के है दिल की आतिश तुझ नेह की हवा सूँ शो'ला निमत जला दिल तुझ हुस्न-ए-शो'ला ज़ा सूँ गुल के चिराग़ गुल हो यक बार झड़ पड़ें सब मुझ आह की हिकायत बोलें अगर सबा सूँ...
मेरी निगह के रह पे फ़र्ख़ंदा फ़ाल चल है रोज़-ए-ईद आज ऐ अबरू हिलाल चल तेरी नयन की दीद कूँ ऐ नूर-ए-हर नज़र शक नईं अगर ख़तन सिती आवें ग़ज़ाल चल...
जब सूँ बाँधा है ज़ालिम तुझ निगह के तीर सूँ तब सूँ रम ले रम किया रमने के हर नख़्वीर सूँ बेहक़ीक़त गर्मजोशी दिल में नईं करती असर शम्अ रौशन क्यूँ के होवे शो'ला-ए-तस्वीर सूँ...
सहर पर्दाज़ हैं पिया के नयन होश दुश्मन हैं ख़ुश अदा के नयन ऐ दिल उसके अगे सँभाल के जा तेग़ बरकफ़ हैं मीरज़ा के नयन...
आशिक़ के मुख पे नैन के पानी कूँ देख तूँ इस आरसी में राज़-ए-निहानी कूँ देख तूँ सुन बेक़रार दिल की अवल आह-ए-शो'ला ख़ेज़ तब इस हरफ़ में दिल की मुआफ़ी कूँ देख तूँ...
आज की रैन मुझ कूँ ख्व़ाब न था दोनों अँखियाँ में ग़ैर-ए-आब न था ख़ून-ए-दिल कूँ किया था मैंने नोश और शीशे मिनीं शराब न था...
सजन की ख़ुर्दसाली पर ख़ुदा नाज़िर ख़ुदा हाफ़िज़ रक़ीबाँ की मलामत सूँ मुहम्मद मुस्तफ़ा हाफ़िज़ सजन के हुस्न-ए-अफ़्ज़ूँ पर ख़ुदाया तू अमां करना कि इस उम्मीद-ए-गुलशन पर अली मुर्तुज़ा हाफ़िज़...
तुझ हुस्न ने दिया है बहार आरसी के तईं बख़्शा है ख़ाल-ओ-ख़त ने निगार आरसी के तईं रौशन है बात ये कि अवल सादालोह थी बख़्शे हैं उसके मूँह सूँ सिंघार आरसी के तईं...
गुजरात के फिराके सों है खा़र-खा़र दिल बेताब है सूनेमन आतिलबहार दिल मरहम नहीं है इसके जखम़का जहाँमने शम्शेरे-हिज्र सों जो हुआ है फिगा़र दिल...
दिल में जब इश्क़ ने तासीर किया फ़र्द-ए-बातिल ख़त-ए-तदबीर किया बंद करने दिल-ए-वहशतज़दा कूँ दाम ज़ह ज़ुल्फ़-ए-गिरहगीर किया...
शराब-ए-शौक़ से सरशार हैं हम कभू बेख़ुद कभी हुशियार हैं हम दोरंगी सूँ तेरी ऐ सर्व-ए-रा'ना कभू राज़ी कभू बेज़ार हैं हम...
उसके नयन में ग़म्ज:-ए-आहू पछाड़ है ऐ दिल सम्हाल चल कि अगे मार-धाड़ है तुझ नैन के चमन मिनीं क्यूँ आ सकूँ कि याँ ख़ाराँ के झाड़ ख़ंजर-ए-मिज़्गाँ की बाड़ है...
चश्म-ए-दिलबर में ख़ुश अदा पाया आलम-ए-दिल कूँ मुब्तिला पाया सैर सहरा की तूँ न कर हरगिज़ दिल के सेहरा में गर ख़ुदा पाया...
तिरा मुख मशरिक़ी, हुस्न अनवरी, जल्वा जमाली है नयन जामी, जबीं फि़रदौसी-ओ-अबरू हलाली है रियाज़ी फ़हम-ओ-गुलशन तब्अ-ओ-दाना दिल, अली फ़ितरत ज़बाँ तेरी फ़सीही-ओ-सुख़न तेरा ज़लाली है...
अब जुदाई न कर ख़ुदा सूँ डर बेवफ़ाई न कर ख़ूदा सूँ डर रास्त कैशाँ सूँ ऐ कमाल अबरू कज अदाई न कर खुदा सूँ डर...
फि़दा-ए-दिलबर-ए-रंगीं अदा हूँ शहीद-ए-शाहिद-ए-गुल गूँ क़बा हूँ हर इक मह रू के नहीं मिलने का ज़ौक़ सुख़न के आशाना का आशना हूँ...
ग़फ़लत में वक्त़ अपना न खो हुशियार हो हुशियार हो कब लग रहेगा ख़्वाब में बेदार हो बेदार हो गर देखना है मुद्दआ, उस शहिद-ए-मा'नी का रौ ज़ाहिर परीशाँ सूँ सदा, बेज़ार हो बेज़ार हो...
हर तरफ़ हंगामा-ए-अजलाफ़ है मत किसू से मिल अगर अशराफ़ है हर सहर तुझ नैमत-ए-दीदार की आरसी कू, इश्तिहा-ए-साफ़ है...