गफ़लत में वक़्त अपना न खो होशियार हो, होशियार हो
कब लग रहेगा ख़्वाब में, बेदार हो, बेदार हो
गर देखना है मुद्दआ उस शाहिद-ए-मआनी का रू
ज़ाहिर परस्ताँ सूँ सदा,बेज़ार हो, बेज़ार हो
ज्यों छ्तर दाग़-ए-इश्क़ कूँ रख सर पर अपने अव्वलाँ
तब फ़ौज-ए-अहल-ए-दर्द का सरदार हो, सरदार हो
वो नौ बहार-ए-आशिक़ाँ, है ज्यूँ सहर जग में अयाँ
अय दीदा वक़्त-ए-ख़्वाब नईं बेदार हो, बेदार हो
मतला का मिसरा अय वली, विर्द-ए-ज़बाँ कर रात - दिन
गफ़लत में वक़्त अपना न खो, होशियार हो, होशियार हो