देखना हर सुब्ह तुझ रुख़्सार का
देखना हर सुब्ह तुझ रुख़्सार का है मुताला मतला-ए-अनवार का बुलबुल ओ परवाना करना दिल के तईं काम है तुझ चेहरा-ए-गुल-नार का सुब्ह तेरा दर्स पाया था सनम शौक़-ए-दिल मोहताज है तकरार का माह के सीने उपर ऐ शम्अ-रू दाग़ है तुझ हुस्न की झलकार का दिल कूँ देता है हमारे पेच-ओ-ताब पेच तेरे तुर्रा-ए-तर्रार का जो सुन्या तेरे दहन सूँ यक बचन भेद पाया नुस्ख़ा-ए-असरार का चाहता है इस जहाँ में गर बहिश्त जा तमाशा देख उस रुख़्सार का आरसी के हाथ सूँ डरता है ख़त चोर कूँ है ख़ौफ़ चौकीदार का सर-कशी आतिश-मिज़ाजी है सबब नासेहों को गर्मी-ए-बाज़ार का ऐ 'वली' क्यूँ सुन सके नासेह की बात जो दिवाना है परी-रुख़्सार का

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