मुदद्त हुई सजन ने किताब नईं लिखी
मुदद्त हुई सजन ने किताबत नईं लिखी आने की अपने रम्‍ज़-ओ-किनायत नईं लिखी मैं अपने दिल की तुझकूँ हिकायत नईं लिखी तेरी मफ़ार्क़त की शिकायत नईं लिखी करता हूँ अपने दिल की नमन चाक-चाक उसे जो आह के क़लम सूँ किताबत नईं लिखी तस्‍वीर तेरे क़द की मुसव्विर न लिख सके हरगिज़ किसी ने नाज़ की सूरत नईं लिखी मारा है इंतिज़ार ने मुझकूँ वले हनोज़ उस बेवफा कूँ दिल की हक़ीक़त नईं लिखी क्‍यूँ संग-ए-दिल तमाम मुसख़्ख़िर हुए अगर ताल्अ में मेरे कश्‍फ़-ओ-करामत नईं लिखी डरता है सादगी सिती मोहन की ऐ 'वली' इस ख़ौफ़ सूँ रक़ीब की अत-पत नईं लिखी

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