तुझ लब की सिफ़त लाल-ए-बदख़्शाँ सूँ कहूँगा
तुझ लब की सिफ़त लाल-ए-बदख़्शाँ सूँ कहूँगा जादू हैं तिरे नैन ग़ज़ालाँ सूँ कहूँगा दी बादशही हक़ ने तुझे हुस्न-नगर की यू किश्वर-ए-ईराँ में सुलैमाँ सूँ कहूँगा तारीफ़ तिरे क़द की अलिफ़-वार सिरीजन जा सर्व-ए-गुलिस्ताँ कूँ ख़ुश-अल्हाँ सूँ कहूँगा मुझ पर न करो ज़ुल्म तुम ऐ लैली-ए-ख़ूबाँ मजनूँ हूँ तिरे ग़म कूँ बयाबाँ सूँ कहूँगा देखा हूँ तुझे ख़्वाब में ऐ माया-ए-ख़ूबी इस ख़्वाब को जा यूसुफ़-ए-कनआँ सूँ कहूँगा जलता हूँ शब-ओ-रोज़ तिरे ग़म में ऐ साजन ये सोज़ तिरा मशअल-ए-सोज़ाँ सूँ कहूँगा यक नुक़्ता तिरे सफ़्हा-ए-रुख़ पर नईं बेजा इस मुख को तिरे सफ़्हा-ए-क़ुरआँ सूँ कहूँगा क़ुर्बान परी मुख पे हुई चोब सी जल कर ये बात अजाइब मह-ए-ताबाँ सूँ कहूँगा बे-सब्र न हो ऐ 'वली' इस दर्द सूँ हरगिज़ जलता हूँ तिरे दर्द में दरमाँ सूँ कहूँगा

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