जब सूँ बाँधा है ज़ालिम तुझ निगह के तीर सूँ
जब सूँ बाँधा है ज़ालिम तुझ निगह के तीर सूँ तब सूँ रम ले रम किया रमने के हर नख़्वीर सूँ बेहक़ीक़त गर्मजोशी दिल में नईं करती असर शम्‍अ रौशन क्‍यूँ के होवे शो'ला-ए-तस्‍वीर सूँ जग में ऐ ख़ुर्शीद रू वो चर्ख़ज़न है ज़र्रावार जिनने दिल बाँधा है तेरे हुस्‍न-ए-आलमगीर सूँ ऐ परी तुझ क़द का दीवाना हुआ है जब सूँ सर्व पायबंद असकूँ किए हैं मौज की ज़जीर सूँ ख़्वाब में देखा जो तरे सब्‍ज़-ए-ख़त कूँ सनम सब्‍ज़बख़्तों में हुआ उस ख़्वाब की ताबीर सूँ जग में नईं अहल-ए-हुनर अपने हुनर सूँ बहरायाब कोहकन कों फ़ैज़ कब पहुँचा है जू-ए-शीर सूँ ऐ 'वली' पी का दहन है गुंचए-गुलज़ार-ए-हुस्‍न बू-ए-गुल आती है असकी शोखि़-ए-तक़रीर सूँ

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