मेरी निगह के रह पे फ़र्ख़ंदा फ़ाल चल
मेरी निगह के रह पे फ़र्ख़ंदा फ़ाल चल है रोज़-ए-ईद आज ऐ अबरू हिलाल चल तेरी नयन की दीद कूँ ऐ नूर-ए-हर नज़र शक नईं अगर ख़तन सिती आवें ग़ज़ाल चल मुमकिन नहीं है तन की तरफ़ उसकी बाज़गश्‍त जो दिल गया है दिलबर-ए-दिलकश की नाल चल पीतम की ज़ुल्‍फ़-ए-पेच दिसा मुझ सवाद-ए-हिंद इस राह-ए-मार बीच में ऐ दिल सम्‍हाल चल वहदत के मैकदे में नहीं बार होश कूँ उस बेख़ुदी के घर की तरफ़ सुध को डाल चल ऐ बेख़बर अगर है बुज़ुर्गीं की आरज़ू दुनिया की रह गुज़र में बुज़ुर्गां की चाल चल गर आकिब़त की मुल्‍क की ख्‍व़ाहिश है सल्‍तनत खुशख़स्‍लती के मुल्‍क में ऐ ख़ुशख़साल चल आया तिरी तरफ़ जो 'वली' तो अजब नहीं आते हैं तुझ गली मिनीं साहिब कमाल चल

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