सनम मेरा सुख़न सूँ आशना है
सनम मेरा सुख़न सूँ आशना है मुझे फि़क्र-ए-सुख़न करना बजा है चमन में वस्‍ल के हर जल्‍वए-यार गुल-ए-रंगीं बहार-ए-मुदद्आ है न बख्‍श़े क्‍यूँ तेरा ख़त जिंद़गानी कि मौज-ए-चश्‍मए-आब-ए-बक़ा है तग़ाफ़ुल ने तिरे ज़ख़्मी किया मुझ तेरी ये कमनिगाही नीमचा है नहीं वाँ आब, ग़ैर अज़ आब-ए-ख़ंजर शहादत गाह-ए-आशिक़ कर्बला है ग़नीमत बूझ मिलने कूँ 'वली' के निगाह-ए-पाकबाज़ाँ कीमिया है

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