तुझ मुख की झलक देख गई जोत चंदर सूँ
तुझ मुख की झलक देख गई जोत चँदर सूँ तुझ मुख पे अरक़ देख गई आब गुहर सूँ शर्मिंदा हो तुझ मुख के दिखे बाद सिकंदर बिलफ़र्ज़ बनावे अगर आईना क़मर सूँ तुझ ज़ुल्‍फ़ में जो दिल कि गया उसकूँ ख़लासी नई सुब्‍ह-ए-क़यामत तलक इस शब के सफ़र सूँ हर चंद कि वहशत है तुझ अँखियाँ सिती ज़ाहिर सद शुक्र कि तुझ दाग़ कूँ अल्‍फ़त है जिगर सूँ अशरफ़ का यो मिसरा 'वली' मुजको गुमाँ है उल्‍फ़त है दिल-ओ-जाँ कूँ मिरे पेमनगर सूँ

Read Next