आज की रैन मुझ कूँ ख्व़ाब न था
आज की रैन मुझ कूँ ख्‍व़ाब न था दोनों अँखियाँ में ग़ैर-ए-आब न था ख़ून-ए-दिल कूँ किया था मैंने नोश और शीशे मिनीं शराब न था आज की रैन दर्द-ओ-ग़म म्‍याने कोई मुझ सार का ख़राब न था मजलिसे-शोख़ में मुझे कुछ भी हुज्‍जत-ए-वस्‍ल कूँ जवाब न था टुक तकल्‍लुफ़ सूँ आके मिल जाता हक़ के नज़दीक क़छ अजा़ब न था माह अंधकार था कि ज्‍यूँ मेरे पास मेरा जो माहताब न था आह पर आह खींचता था मैं आज की रात कुछ हिसाब न था क्‍या सबब था जो ख़ुद नहीं आया कि उसे मुझ सिती हिजाब न था गिला-ए-शोख़ ऐ 'वली' करना हर किसी कन तुझे सवाब न था

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