दिल में जब इश्क़- ने तासीर किया
दिल में जब इश्‍क़ ने तासीर किया फ़र्द-ए-बातिल ख़त-ए-तदबीर किया बंद करने दिल-ए-वहशतज़दा कूँ दाम ज़‍ह ज़ुल्‍फ़-ए-गिरहगीर किया मौज-ए-रफ्त़ार ने तुझ क़द की सनम सर्व-ए-आज़ाद कूँ ज़ंजीर किया सब्‍ज़ बख्‍त़ों में उसे लिखते हैं वस्‍फ़ तुझ ख़त के जो तहरीर दिया जुज़ अलम उसकूँ न होवे हासिल इश्‍क़-ए-बेपीर कूँ जो पीर किया शम्‍अ मानिंद जली उसकी ज़बाँ जिनने मुझ सोज़ की तक़रीर किया गिर्य:-ओ-गर्द-ए-मलामत 'सूँ 'वली' ख़ाना-ए-इश्‍क़ कूँ तामीर किया

Read Next