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याद तुम्हारी लेकर सोया, याद तुम्हारी लेकर जागा। सच है, दिन की रंग रँगीली दुनिया ने मुझको बहकाया, सच, मैंने हर फूल-कली के...

गरमी में प्रात: काल पवन बेला से खेला करता जब तब याद तुम्‍हारी आती है। जब मन में लाखों बार गया-...

एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो। इन जंजीरों की चर्चा में कितनों ने निज हाथ बँधाए, कितनों ने इनको छूने के कारण कारागार बसाए, इन्हें पकड़ने में कितनों ने लाठी खाई, कोड़े ओड़े,...

त्राहि, त्राहि कर उठता जीवन! जब रजनी के सूने क्षण में, तन-मन के एकाकीपन में कवि अपनी विव्हल वाणी से अपना व्याकुल मन बहलाता,...

जग के सबसे उँचे पर्वत की छाया के वासी हम। बीते युग के तम का पर्दा फाड़ो, देखो, उसके पार पुरखे एक तुम्हारे-मेरे,...

यह पावस की सांझ रंगीली! फैला अपने हाथ सुनहले रवि, मानो जाने से पहले, लुटा रहा है बादल दल में अपनी निधि कंचन चमकीली!...

मैं गाता, शून्य सुना करता! इसको अपना सौभाग्य कहूँ, अथवा दुर्भाग्य इसे समझूँ, वह प्राप्त हुआ बन चिर-संगी जिससे था मैं पहले डरता!...

सखि, अभी कहाँ से रात, अभी तो अंबर लाली। पर अभी नहीं चिड़ियों ने अपने नीड़ों को मोड़े, हंसों ने लहरों के अंचल-पट...

सोच सुखी मेरी छाती है— दूर कहाँ मुझसे जाएगी, कैसे मुझको बिसराएगी? मेरे ही उर की मदिरा से तो, प्रेयसि, तू मदमाती है!...

जीवन का विष बोल उठा है! मूँद जिसे रक्खा मधुघट से, मधुबाला के श्यामल पट से, आज विकल, विह्वल सपनों के अंचल को वह खोल उठा है!...

एकाकीपन भी तो न मिला। मैंने समझा था संगरहित जीवन के पथ पर जाता हूँ, मेरे प्रति पद की गति-विधि को जग देख रहा था खोल नयन।...

जीवन की आपाधापी में कब वक्त मिला कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूं, जो किया, कहा, माना उसमें भला बुरा क्या। जिस दिन मेरी चेतना जगी मैनें देखा,...

खेल चुके हम फाग समय से! फैलाकर निःसीम भुजाएँ, अंक भरीं हमने विपदाएँ, होली ही हम रहे मनाते प्रतिदिन अपने यौवन वय से!...

आओ बापू के अंतिम दर्शन कर जाओ, चरणों में श्रद्धांजलियाँ अर्पण कर जाओ, यह रात आखिरी उनके भौतिक जीवन की, कल उसे करेंगी...

रात-रात भर श्वान भूकते। पार नदी के जब ध्वनि जाती, लौट उधर से प्रतिध्वनि आती समझ खड़े समबल प्रतिद्वदी दे-दे अपने प्राण भूकते।...

प्रबल झंझावात, साथी! देह पर अधिकार हारे, विवशता से पर पसारे, करुण रव-रत पक्षियों की आ रही है पाँत, साथी!...

नीड़ का निर्माण फिर-फिर, नेह का आह्वान फिर-फिर! वह उठी आँधी कि नभ में, छा गया सहसा अँधेरा,...

इतने मत उन्मत्त बनो। जीवन मधुशाला से मधु पी, बनकर तन-मन-मतवाला, गीत सुनाने लगा झूमकर,...

आज़ादी के नौ वर्ष मुबारक तुमको, नौ वर्षों के उत्कर्ष मुबारक तुमको, हर वर्ष तुम्हें आगे की ओर बढाए, हर वर्ष तुम्हें ऊपर की ओर उठाए;...

भारत की यह परम्परा है-- जब नारी के बालों को खींचा जाता है, धर्मराज का सिंहासन डोला करता है, क्रुद्ध भीम की भुजा फड़कती,...

जब-जब मेरी जिह्वा ड़ोले। स्वागत जिनका हुआ समर में, वक्षस्थल पर, सिर पर, कर में, युग-युग से जो भरे नहीं हैं मन के घावों को खोले।...

मैं क्या कर सकने में समर्थ? मैं आधि-ग्रस्त, मैं व्याधि ग्रस्त, मैं काल-त्रस्त, मैं कर्म-त्रस्त, मैं अर्थ ध्येय में रख चलता, मुझसे हो जाता है अनर्थ!...

वह तितली है, यह बिस्तुइया। यह काली कुरूप है कितनी! वह सुंदर सुरूप है कितनी! गति से और भयंकर लगती यह, उसका है रूप निखरता।...

था उचित कि गाँधी जी की निर्मम हत्‍या पर तारे छिप जाते, काला हो जाता अंबर, केवल कलंक अवशिष्‍ट चंद्रमा रह जाता, कुछ और नज़ारा...

देवता उसने कहा था! रख दिए थे पुष्प लाकर नत नयन मेरे चरण पर! देर तक अचरज भरा मैं देखता खुद को रहा था!...

हम ऐसे आज़ाद हमारा झंडा है बादल चांदी, सोने, हीरे मोती से सजती गुड़िया इनसे आतंकित करने की घडियां बीत गई इनसे सज धज कर बैठा करते हैं जो कठपुतले...

(१) मैं था, मेरी मधुबाला थी, अधरों में थी प्यास भरी, नयनों में थे स्वप्न सुनहले,...

कुछ भी नहीं, कुछ भी नहीं! उर में छलकता प्यार था, दृग में भरा उपहार था, तुम क्यों ड़रे, था चाहता मैं तो प्रणय-प्रतिकार मे-...

अब निशा नभ से उतरती! देख, है गति मन्द कितनी पास यद्यपि दीप्ति इतनी, क्या सबों को जो ड़राती वह किसी से आप ड़रती?...

दिखे अगर कभी मकान में झरन, सयत्न मूँदते उसे प्रवीण जन, निचिंत बैठना बड़ा गँवारपन, कि जब समस्त देश में दरार हो।...

कर रहा हूँ आज मैं आज़ाद हिंदुस्तान का आह्वान! है भरा हर एक दिल में आज बापू के लिए सम्मान, हैं छिड़े हर एक दर पर क्रान्ति वीरों के अमर आख्यान, हैं उठे हर एक दर पर देश-गौरव के तिरंग निशान,...

(वृद्धों को) रह स्वस्थ आप सौ शरदों को जीते जाएँ, आशीष और उत्साह आपसे हम पाएँ। (प्रौढ़ों को)...

विदेश की कुनीति हो गई सफल, समस्त जाति की न काम दी अक़ल, सकी न भाँप एक चाल, एक छल, फ़रक़ हमें दिखा न फूल-शूल में।...

मेरा जीवन सबका साखी। कितनी बार दिवस बीता है, कितनी बार निशा बीती है, कितनी बार तिमिर जीता है,...

अंबर क्या इसलिये बना था— मानव अपनी बुद्धि प्रबल से यान बना चढ़ जाए छल से, फिर अपने कर उच्छृंखल से...

मुझको भी संसार मिला है। जिन्हें पुतलियाँ प्रतिपल सेतीं, जिन पर पलकें पहरा देतीं, ऐसी मोती की लड़ियों का मुझको भी उपहार मिला है।...

चल मरदाने, सीना ताने, हाथ हिलाते, पांव बढाते, मन मुस्काते, गाते गीत। एक हमारा देश, हमारा...

आज निर्मम हो गया इंसान। एक ऐसा भी समय था, कांपता मानव हृदय था, बात सुनकर, हो गया कोई कहीं बलिदान।...

कोई पार नदी के गाता! भंग निशा की नीरवता कर, इस देहाती गाने का स्वर, ककड़ी के खेतों से उठकर, आता जमुना पर लहराता!...

मैं क्यों अपनी बात सुनाऊँ? जगती के सागर में गहरे जो उठ-गिरतीं अगणित लहरें, उनमें एक लहर लघु मैं भी, क्यों निज चंचलता दिखलाऊँ?...