प्रबल झंझावात, साथी
प्रबल झंझावात, साथी! देह पर अधिकार हारे, विवशता से पर पसारे, करुण रव-रत पक्षियों की आ रही है पाँत, साथी! प्रबल झंझावात, साथी! शब्द ’हरहर’, शब्द ’मरमर’-- तरु गिरे जड़ से उखड़कर, उड़ गए छत और छप्पर, मच गया उत्पात, साथी! प्रबल झंझावात, साथी! हँस रहा संसार खग पर, कह रहा जो आह भर भर-- ’लुट गए मेरे सलोने नीड़ के तॄण पात।’ साथी! प्रबल झंझावात, साथी!

Read Next