मैं क्यों अपनी बात सुनाऊँ?
मैं क्यों अपनी बात सुनाऊँ? जगती के सागर में गहरे जो उठ-गिरतीं अगणित लहरें, उनमें एक लहर लघु मैं भी, क्यों निज चंचलता दिखलाऊँ? मैं क्यों अपनी बात सुनाऊँ? जगती के तरुवर में प्रति पल जो लगते-गिरते पल्लव-दल, उनमें एक पात लघु मैं भी, क्यों निज मरमर-गायन गाऊँ? मैं क्यों अपनी बात सुनाऊँ? मुझ-सा ही जग भर का जीवन, सब में सुख-दुख, रोदन-गायन, कुछ बतला, कुछ बात छिपा क्यों एक पहेली व्यर्थ बुझाऊँ? मैं क्यों अपनी बात सुनाऊँ?

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