कुछ भी नहीं, कुछ भी नहीं
कुछ भी नहीं, कुछ भी नहीं! उर में छलकता प्यार था, दृग में भरा उपहार था, तुम क्यों ड़रे, था चाहता मैं तो प्रणय-प्रतिकार मे- कुछ भी नहीं, कुछ भी नहीं! मुझको गये तुम छोड़कर, सब स्वप्न मेरा तोड़कर, अब फाड़ आँखें देखता अपना वृहद संसार में- कुछ भी नहीं, कुछ भी नहीं! कुछ मौन आँसू में गला, कुछ मूक श्वासों में ढ़ला, कुछ फाड़कर निकला गला, पर, हाय, हो पाई कमी मेरे हृदय के भार में- कुछ भी नहीं, कुछ भी नहीं!

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