यह पावस की सांझ रंगीली
यह पावस की सांझ रंगीली! फैला अपने हाथ सुनहले रवि, मानो जाने से पहले, लुटा रहा है बादल दल में अपनी निधि कंचन चमकीली! यह पावस की सांझ रंगीली! घिरे घनों से पूर्व गगन में आशाओं-सी मुर्दा मन में, जाग उठा सहसा रेखाएँ-लाल, बैगनी, पीली, नीली! यह पावस की सांझ रंगीली! इंद्र धनुष की आभा सुंदर साथ खड़े हो इसी जगह पर थी देखी उसने औ’ मैंने--सोच इसे अब आँखें गीली! यह पावस की सांझ रंगीली!

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