एक ओर बनता ही चला जा रहा है निर्माण का हिन्दुस्तान दूसरी ओर गिरता ही चला जा रहा है ईमान का हिन्दुस्तान...
मित्र नाम है सूर्य का लेकिन तुम कोयला हो मेरे मित्र! वर्तमान की जठराग्नि में जलने के लिए...
जन्म-मरण का ‘होना’ और ‘न होना’ यही प्रकृति का अटल नियम है। देश काल भी इसी नियम के अंतर्गत है।...
पंचवर्षी योजना की रीढ़ ऋण की शृंखला है, पेट भारतवर्ष का है और चाकू डालरी है। संधियाँ व्यापार की अपमान की कटु ग्रंथियाँ हैं हाथ युग के सारथी हैं, भाग्य-रेखा चाकरी है॥...
चोली फटी सरस सरसों की लहंगा गिरा फागुनी नीचे चूनर उड़ी अकासी नीली नंगी हुई पहाड़ी देखो।...
सतत अपने तरल कोर के संस्पर्शों से, काट रही है दृढ़ कगार को जल की धारा। साँसे लेता हुआ समीरण प्रश्वासों से, तोड़ रहा है कण-कण का संसर्ग सहारा।...
जैसे कोई सितारिया द्रुत में सितार को बजाए, लय में पहुँच कर वह स्वयं लय हो जाए, फिर न वह सितार को बजाए-- चलता हाथ ही बजाए,...
तुम मेरे लिए नहीं हो-- न हो सकती हो कि मैं अंगुलियों से हवाएँ काटता रहता हूँ ख़ुशनसीब हैं वह उड़ते चले जा रहे पखेरुओं के जोड़े मेरी दिशा से ठीक विपरीत जिनकी दिशाएँ हैं।...
न्याय बाँटती है काठ की कठोर कुरसी पाने वाला असन्तुष्ट-- न पाने वाला असन्तुष्ट !...
तन में बसी साँस में बह लो तप में तपी धूप में दह लो गह लो सुख दुख में भी रह लो अपनी व्यथा आप से कह लो।...
सिन्धुग्राही मौन धीरज की बनी दृढ़ मूर्तियों का काल-अविजित शिल्प-संवेदन मुखर है, सुघड़-अंगी दीप्तियों के...