मौन-मिटा
मौन-मिटा वाक्-चपल लोग हुए, भीतर से बोले जीवन की बानी। सम्पुट पंखुरियों का महादेश अन्ततः खुला गमक उठी आत्म-गंध रंग-रूप छलका।

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