आतप-तपी सुमेरु-शरीरा
आतप-तपी सुमेरु-शरीरा नदी-नाद-नद-वाद-वादिनी सिंधु-गंभीरा, मूर्ति पूर्ति की, त्याग-तोष की तीरा, सत्य सँवारी धरा हमारी विदा-वन्दना-सहित अर्चना रवि को दे कर अन्तिम अरुणा की कर-कम्पित करुणा ले कर धावित आते अंधकार पर जय पाने को सजग खड़ी है।

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