छूँछे घड़े
छूँछे घड़े बाट के टूटे ऊँचे नहीं-- पड़े हैं नीचे कभी जिन्होंने पौधे सींचे अब मन चीते हाथ गहे के वे दिन बीते अंक लगे के शीस चढ़े के सपने रीते

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