नूतन का आलोक
नूतन का आलोक पुरातन की बाँहों में नहीं बंधेगा, यह अभिनव आलोक सभासद अथवा मंत्री उस संसद का नहीं बनेगा : जिस संसद का नाम-काम गुण-गौरव-गायन पतझर को विस्तार दिए है जिस संसद की दृष्टि भ्रष्ट है, सृष्टि कष्ट है, जिस संसद को जन-मन-दोहन पुष्ट किए है।

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