याद
याद ? है आवाज़ पथ के पेड़ की, राहगीरों के लिए जो गए लौटे नहीं इस राह से ! वह सुबह की चांदनी है ओस से भीगी हुई धूप का दर्पण लिए ओट में गूंगी खड़ी । वह नदी के नील जल की वासना है जो कगारों को डिगाए जा रही है।

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