गए साल की
गए साल की ठिठकी ठिठकी ठिठुरन नए साल के नए सूर्य ने तोड़ी। देश-काल पर, धूप-चढ़ गई, हवा गरम हो फैली, पौरुष के पेड़ों के पत्ते चेतन चमके। दर्पण-देही दसों दिशाएँ रंग-रूप की दुनिया बिम्बित करतीं, मानव-मन में ज्योति-तरंगे उठतीं।

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