जैसे कोई सितारिया
जैसे कोई सितारिया द्रुत में सितार को बजाए, लय में पहुँच कर वह स्वयं लय हो जाए, फिर न वह सितार को बजाए-- चलता हाथ ही बजाए, और वह संगीत-- झंकृत संगीत तात्विक संगीत हो जाए, केवल आनन्द ही आनन्द लहरे और लहराए, केवल शरीर ही उसका सितार से टिका रह जाए, ओ मेरे संसार ! मैं यही तुमसे पाऊँ जब तक मैं जियूँ, तुम्हें बजाऊँ न मैं रुकूँ न कोई रोक पाए आयु मैं अपनी इस तरह बिताऊँ।

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