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गर्म लोहा पीट, ठंडा पीटने को वक्त बहुतेरा पड़ा है। सख्त पंजा, नस कसी चौड़ी कलाई और बल्लेदार बाहें, और आँखें लाल चिंगारी सरीखी,...

मेरा भी विचित्र स्वभाव! लक्ष्य से अनजान मैं हूँ, लस्त मन-तन-प्राण मैं हूँ, व्यस्त चलने में मगर हर वक्त मेरे पाँव!...

प्यार किसी को करना लेकिन कह कर उसे बताना क्या अपने को अर्पण करना पर और को अपनाना क्या...

मेरे साथ अत्याचार। प्यालियाँ अगणित रसों की सामने रख राह रोकी, पहुँचने दी अधर तक बस आँसुओं की धार।...

ग़म ग़लत करने के जितने भी साधन मुझे मालूम थे, और मेरी पहुँच में थे, और सबको एक-एक जमा करके ...

शुरू हुआ उजियाला होना! हटता जाता है नभ से तम, संख्या तारों की होती कम, उषा झाँकती उठा क्षितिज से बादल की चादर का कोना!...

इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा! यह चाँद उदित होकर नभ में कुछ ताप मिटाता जीवन का, लहरालहरा यह शाखा‌एँ कुछ शोक भुला देती मन का, कल मुर्झानेवाली कलियाँ हँसकर कहती हैं मगन रहो,...

कह रही है पेड़ की हर शाख़, अब तुम आ रहे अपने बसेरे। आज दक्खिन की हवा ने आ अचानक द्वार मेरे खड़खड़ाए, हलचली है मच गई उन बादलों में...

अब तो दुख दें दिवस हमारे! मेरा भार स्वयं ले करके, मेरी नाव स्वयं खे करके, दूर मुझे रखते जो श्रम से, वे तो दूर सिधारे!...

तूने क्या सपना देखा है? पलक रोम पर बूँदें सुख की, हँसती सी मुद्रा कुछ मुख की, सोते में क्या तूने अपना बिगड़ा भाग्य बना देखा है।...

हम गाँधी की प्रतिभा के इतने पास खड़े हम देख नहीं पाते सत्‍ता उनकी महान, उनकी आभा से आँखें होतीं चकाचौंध, गुण-वर्णन में...

सशंकित नयनों से मत देख! खाली मेरा कमरा पाकर, सूखे तिनके पत्ते लाकर, तूने अपना नीड़ बनाया कौन किया अपराध?...

क्या है मेरी बारी में। जिसे सींचना था मधुजल से सींचा खारे पानी से, नहीं उपजता कुछ भी ऐसी...

दीप अभी जलने दे, भाई! निद्रा की मादक मदिरा पी, सुख स्वप्नों में बहलाकर जी, रात्रि-गोद में जग सोया है, पलक नहीं मेरी लग पाई!...

है हार नहीं यह जीवन में! जिस जगह प्रबल हो तुम इतने, हारे सब हैं मानव जितने, उस जगह पराजित होने में है ग्लानि नहीं मेरे मन में!...

मैं कल रात नहीं रोया था दुख सब जीवन के विस्मृत कर, तेरे वक्षस्थल पर सिर धर, तेरी गोदी में चिड़िया के बच्चे-सा छिपकर सोया था!...

जीवन खोजता आधार! हाय, भीतर खोखला है, बस मुलम्मे की कला है, इसी कुंदन के ड़ले का नाम जग में प्यार!...

घुल रहा मन चाँदनी में! पूर्णमासी की निशा है, ज्योति-मज्जित हर दिशा है, खो रहे हैं आज निज अस्तित्व उडुगण चाँदनी में!...

मिट्टी से व्यर्थ लड़ाई है। नीचे रहती है पावों के, सिर चढ़ती राजा-रावों के, अंबर को भी ढ़क लेने की यह आज शपथ कर आई है।...

खिड़की से झाँक रहे तारे! जलता है कोई दीप नहीं, कोई भी आज समीप नहीं, लेटा हूँ कमरे के अंदर बिस्तर पर अपना मन मारे!...

यह चाँद नया है नाव नई आशा की। आज खड़ी हो छत पर तुमने होगा चाँद निहारा, फूट पड़ी होगी नयनों से...

ओ अपरिपूर्णता की पुकार! शत-शत गीतों में हो मुखरित, कर लक्ष-लक्ष उर में वितरित, कुछ हल्का तुम कर देती हो मेरे जीवन का व्यथा-भार!...

मैं जग से कुछ सीख न पाया। जग ने थोड़ा-थोड़ा चाहा, थोड़े में ही काम निबाहा, लेकिन अपनी इच्छाओं को मैंने सीमाहीन बनाया।...

जो खड़ा है तोड़ कारागार की दीवार, मेरा देश है। काल की गति फेंकती किस पर नहीं अपना अलक्षित पाश है, सिर झुका कर बंधनों को मान जो लेता वही बस दास है, थे विदेशी के अपावन पग पड़े जिस दिन हमारी भूमि पर,...

मैं उसे फिर पा गया था! था वही तन, था वही मन, था वही सुकुमार दर्शन, एक क्षण सौभाग्य का छूटा हुआ-सा आ गया था!...

गाँधी : अन्याय अत्याचार की दासत्व सहती मूर्च्छिता-मृत जाति की जड़ शून्यता में कड़कड़ाती बिजलियों की ...

बंद होना चाहिए, यह तुमुल कोलाहल, करुण चीत्कार ,हाय पुकार, कर्कश-क्रुद्ध-स्वर आरोप...

उजला-उजला हंस एक दिन उड़ते-उड़ते आया, हंस देखकर काला कौआ मन ही मन शरमाया।...

आगे हिम्मत करके आओ! मधुबाला का राग नहीं अब, अंगूरों का बाग नहीं अब, अब लोहे के चने मिलेंगे दाँतों को अजमाओ!...

क्या तुझ तक ही जीवन समाप्त? तेरे जीवन की क्यारी में कुछ उगा नहीं, मैंने माना, पर सारी दुनिया मरुथल है...

आज गीत मैं अंक लगाए, भू मुझको, पर्यंक मुझे क्या। खंडित-सा मैं घूम रहा था जग-पंथों पर भूला-भूला, तुमको पाकर पूर्ण हुआ मैं...

कुछ शक्ल तुम्हारी घबराई-घबराई-सी दिग्भ्रम की आँखों के अन्दर परछाईं सी, तुम चले कहाँ को और कहाँ पर पहुँच गए। लेकिन, नाविक, होता ही है तूफान प्रबल।...

’आज सुखी मैं कितनी, प्यारे!’ चिर अतीत में ’आज’ समाया, उस दिन का सब साज समाया, किंतु प्रतिक्षण गूँज रहे हैं नभ में वे कुछ शब्द तुम्हारे!...

सुखमय न हुआ यदि सूनापन! मैं समझूँगा सब व्यर्थ हुआ- लंबी-काली रातों में जग तारे गिनना, आहें भरना, करना चुपके-चुपके रोदन,...

क्षीण कितना शब्द का आधार! मौन तुम थीं, मौन मैं था, मौन जग था, तुम अलग थीं और मैं तुमसे अलग था, जोड़-से हमको गये थे शब्द के कुछ तार।...

आज उठा मैं सबसे पहले! सबसे पहले आज सुनूँगा, हवा सवेरे की चलने पर, हिल, पत्तों का करना ‘हर-हर’...

नभ में वेदना की लहर! मर भले जाएँ दुखी जन, अमर उनका आर्त क्रंदन; क्यों गगन विक्षुब्ध, विह्वल, विकल आठों पहर?...

सन्नाटा वसुधा पर छाया, नभ में हमनें कान लगाया, फ़िर भी अगणित कंठो का यह राग नहीं हम सुन पाते हैं कहते हैं तारे गाते हैं...

तुष्ट मानव का नहीं अभिमान। जिन वनैले जंतुओं से था कभी भयभीत होता, भागता तन-प्राण लेकर,...

आ रही रवि की सवारी! नव किरण का रथ सजा है, कलि-कुसुम से पथ सजा है, बादलों से अनुचरों ने स्वर्ण की पोशाक धारी!...