मेरा भी विचित्र स्वभाव
मेरा भी विचित्र स्वभाव! लक्ष्य से अनजान मैं हूँ, लस्त मन-तन-प्राण मैं हूँ, व्यस्त चलने में मगर हर वक्त मेरे पाँव! मेरा भी विचित्र स्वभाव! कुछ नहीं मेरा रहेगा, जो सदा सबसे कहेगा, वह चलेगा लाद इतना भाव और अभाव! मेरा भी विचित्र स्वभाव! उर व्यथा से आँख रोती, सूज उठती, लाल होती, किन्तु खुलकर गीत गाते हैं हृदय के घाव! मेरा भी विचित्र स्वभाव!

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