गर्म लोहा
गर्म लोहा पीट, ठंडा पीटने को वक्त बहुतेरा पड़ा है। सख्त पंजा, नस कसी चौड़ी कलाई और बल्लेदार बाहें, और आँखें लाल चिंगारी सरीखी, चुस्त औ तीखी निगाहें, हाँथ में घन, और दो लोहे निहाई पर धरे तू देखता क्या? गर्म लोहा पीट, ठंडा पीटने को वक्त बहुतेरा पड़ा है। भीग उठता है पसीने से नहाता एक से जो जूझता है, ज़ोम में तुझको जवानी के न जाने खब्त क्या क्या सूझता है, या किसी नभ देवता नें ध्येय से कुछ फेर दी यों बुद्धि तेरी, कुछ बड़ा, तुझको बनाना है कि तेरा इम्तहां होता कड़ा है। गर्म लोहा पीट, ठंड़ा पीटने को वक्त बहुतेरा पड़ा है। एक गज छाती मगर सौ गज बराबर हौसला उसमें, सही है; कान करनी चाहिये जो कुछ तजुर्बेकार लोगों नें कही है; स्वप्न से लड़ स्वप्न की ही शक्ल में है लौह के टुकड़े बदलते लौह का वह ठोस बन कर है निकलता जो कि लोहे से लड़ा है। गर्म लोहा पीट, ठंड़ा पीटने को वक्त बहुतेरा पड़ा है। घन हथौड़े और तौले हाँथ की दे चोट, अब तलवार गढ तू और है किस चीज की तुझको भविष्यत माँग करता आज पढ तू, औ, अमित संतान को अपनी थमा जा धारवाली यह धरोहर वह अजित संसार में है शब्द का खर खड्ग ले कर जो खड़ा है। गर्म लोहा पीट, ठंडा पीटने को वक्त बहुतेरा पड़ा है।

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